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Tuesday, September 11, 2012

दुश्मन भगाओ, देश बचाओ


जनता इन्हें गलियों में से उठा कर संसद और राज गद्दी तक पहुंचाती है. पर  आदत से मज़बूर ये अपनी असली औकात नहीं भूल पाते और संसद में आकर भी लग जाते हैं गाली-गलौज़ करने, माइक उखाड़ने, मारने-पीटने. इन्होनें पहले तो विधान सभाओं में बत्तमीज़ी का ज़ोर आज़मया, कपड़े फाड़े, माइक उखाड़े, फैंके; सदन में बैठ कर ब्लू फ़िल्में देखी, झोले भर भर रिश्वत खाई, धर्म-जाति का ज़हर घोट-घोट कर  जनता को पिलाया, भाई-भाई को दुश्मन बनाया; देश के संसाधनों की, सम्पत्ति की ऐसी लूट मचाई जिसकी मिसाल इतिहास में नहीं मिलती.  फ़िर संसद में सांसदों की खरीद फ़रोख्त का मेला लगाया, धक्का-मुक्की शुरू हो चुकी है. चार्ज-शीटड गुण्डे, गुनहगार जिन्हें किसी भी सरकारी नौकरी के योग्य नहीं माना जाता, वही (१६२ से भी अधिक) सांसद बन कर आज हमारे लिये कानून बना रहे हैं. दुर्योधन, दुश्शासन से भी ज़्यादा बेशर्म बलात्कारी/व्यभिचारी (तिवारी-गण, सिंघवी, मदेरना, कांडा आदि) तो यहां पहले से हैं हीं. अब देखिये कितनी द्रौपदियों का चीर हरण भी यहीं हुआ करेगा! और हम चुप बैठे लुटते रहें, इनके इशारों पर आपस में ही कटते-मरते रहें, बेइज़्ज़त होते रहें? कब तक? क्या हो गया हमारे आत्म सम्मान को, देश-भक्ति को, राष्ट्र गौरव को?

मैने दुकानदारों से, शिक्षकों से, वकीलों से, सेवा-निवृत्त कर्नलों-जनरलों, बाबुओं से पूछा: "ये सब कब तक सहन करते रहोगे?" सबने मुझे विस्मित भाव से देखा, व्यंग्यात्मक ढंग से हंसे जैसे मुझे उनके सामने नहीं, पागलखाने में होना चाहिये था. सबका ज़वाब भी एक जैसा ही था - "नहीं तो क्या कर लोगे? अन्ना हज़ारे जैसे त्यागी तपस्वी देश-भक्तों और बाबा राम देव जैसे धुरंधरों ने क्या कर लिया इनका?"  

पास ही में एक मोची एक किसान के जूतों की मरम्मत कर रहा था. किसान बीड़ी पी रहा था. कुछ लोग ठेली वाले के छोले-कुल्चों का मज़ा ले रहे थे. ये सब हमारी वर्ता सुन रहे थे. मैने बिना किसी एक तो इंगित किये यूं ही पूछ लिया - "क्या आप लोगों को ये सब मंज़ूर है?" वे सब एक स्वर में ललकार उठे - "बस बहुत हो चुका इनकी नंगी राजनीति का ताण्डव; अब समय गया है, या तो ये हटें; वरना हम मारेंगे या मरेंगे - अब छोड़ेंगे नहीं". 
आइये कम से कम इन वीरों का साथ देकर ही देश को बचायें. आसान सी शुरूआत करें:

.    सबसे पहले अपने विचारों में क्रांति लायें;

.    समझें और समझाएं कि वोट केवल देश के हित के लिये हो. भाई-भतीजावाद, परिवारवाद, जाति, धर्म वा क्षेत्रीय हितों के लिये कदापि नहीं;

.    भ्रष्टाचार का हर जगह कड़ा विरोध करें;

.    निजी स्वार्थ से ऊपर उठ कर कानून का सच्चे मन से पालन करें;

.    जाति-धर्म की संकीर्ण दायरों से बाहर निकलें; सौहर्द और भाईचारा बढ़ाएं - आखिर वसुधैव कुटुम्बकमभी तो भारतीय संस्कृति का ही सन्देश है.
 
जय हिन्द, जय भारत
कर्ण खर्ब

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